इस साल भारत का रेडीमेड गारमेंट उद्योग का निर्यात कम होकर 20 बिलियन डॉलर का रह गया, बांग्लादेश का निर्यात 35 बिलियन डालर का
नई दिल्ली: कोविड लॉकडाउन और अब कच्चे धागे और यार्न की बढ़ती कीमत के चलते भारत के रेडीमेड गारमेंट उद्योग संकट में हैं. इस संकट के चलते इस साल भारत का रेडीमेड गारमेंट उद्योग का निर्यात कम होकर 20 बिलियन डॉलर का रह गया है, वहीं बांग्लादेश का 35 बिलियन डालर का है. एक करोड़ से ज्यादा लोगों को नौकरी देने वाला गारमेंट उद्योग मुश्किलों में है. दिक्कतों के चलते भारत का रेडीमेड गारमेंट व्यवसाय बांग्लादेश, चीन और वियतनाम के मुकाबले पिछड़ रहा है. दिल्ली एनसीआर में रेडीमेट गारमेंट बनाने की तीन हजार से ज्यादा फैक्ट्रियां हैं, जिनसे 10 लाख से ज्यादा लोग जुड़े हैं. लेकिन पहले कोविड की बंदिश और अब महंगे यार्न और कच्चे धागे ने रेडीमेड कपड़े के व्यवसाय की कमर तोड़ दी है.
आंकड़ों को अगर देखें तो पता चलता है कि भारत का रेडीमेड गारमेंट का निर्यात 2018-19 में करीब 16 बिलियन डॉलर का था. साल 2019-20 में करीब 15 बिलियन और 2020-21 में घटकर 12 बिलियन डॉलर का रह गया. जबकि इस दौरान बांग्लादेश का कुल निर्यात 30 बिलियन डालर के आसपास रहा. खुद नोएडा रेडीमेट गारमेंट एसोसिएशन के प्रधान ललित ठुकराल कहते हैं कि महंगे यार्न और कच्चे धागे के चलते रेडीमेड गारमेंट का काम बांग्लादेश में शिफ्ट हो रहा है.
ललित ठुकराल ने कहा कि बांग्लादेश और वियतनाम का यूरोपियन कंट्री से एफटीए है, हमारा नहीं है. कपास हमारा, यार्न हमारा, वो वहां भेज रहा हैं. वहां से कपड़ा बनकर यहां आ रहा है. हिन्दुस्तान के स्टोर में बांग्लादेश का कपड़ा बिक रहा है, क्योंकि वहां सस्ता हो रहा है.
एक तरफ भारत के रेडीमेड गारमेंट का निर्यात कम हो रहा है लेकिन भारत से यार्न और कच्चे धागे का निर्यात बढ़ रहा है. लेकिन भारत का 70 फीसदी कपास और यार्न चीन, बांग्लादेश और वियतनाम को निर्यात होता है. हाल फिलहाल के आंकड़े देखें तो पता चलता है कि सबसे ज्यादा 37 फीसदी यार्न बांग्लादेश को निर्यात होता है. TeXPROCIL के वाइस चेयरमेन सुनील पटवारी कहते हैं कि कॉटन यार्न के भाव सबसे ज्यादा 20 से 25 फीसदी बढ़ गए, डीजल-पेट्रोल और लॉजिस्टिक बढ़ा है. इन सब वजहों के कारण कास्ट ऑफ प्रोडक्शन बढ़ा है.